28 मार्च 2010

सुरेश उजाला के चार मुक्तक

(1)  
सागर  के  सीप  हो   गए।
लक्ष्य के समीप  हो गए।।
शिक्षा जब मिल गई हमें-
अपने  ही  दीप   हो गए।।

 

(2)
खडे़ कुछ सवाल हो गए।
जान को बवाल हो गए।।
समझा था जिनको कर्णधार-
देश के दलाल हो गए।।
 

(3)
तिल से जो  ताड़  हो  गए।
राई  से   पहाड़  हो  गए।।
निधियाँ उनको फली मगर-
गाँव-घर उजाड़  हो  गए।।

(4)
अंधकार      को  दूर   भगाओ।
शिक्षित बन गुथ्थी सुलझाओ।
सभी   रास्ते   खुल       जाएंगे-
अपने दीप स्वयं बन जाओ।।
 

सचलभाष- 9451144480

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