(हास्य-प्रधान व्याख्यान)
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#डॉ_डंडा_लखनवी
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स्वर्ग में जोड़ियां बनती हैं, ऐसा बहुत पहले कहा गया था। लेकिन तब इंटरनेट नहीं था, कोर्ट मैरिज नहीं होती थी, और शादी के कार्ड पर “रिश्ता स्वर्ग से बना है” लिखवाने का रिवाज भी नया-नया था। अब तो लगता है कि स्वर्ग में बनी जोड़ियों ने धरती पर आकर ऐसा अभिनय किया है कि देवता भी माथा पीट रहे होंगे— “हे ब्रह्मा, ये हमने क्या रचा!”
*स्वर्ग की जोड़ियां*:
दिव्य मेल-जोल
स्वर्ग की जोड़ियों में संवाद नहीं, टेलीपैथी होती है। वहाँ पति पत्नी को देखते ही समझ जाते हैं कि "स्वर्णपात्र में अमृत चाहिए या सोमरस।" वहाँ तर्क नहीं, तुरन्त सहमति मिलती है। “क्या तुम नारायण का ध्यान लगाना चाहोगी?” पूछने पर पत्नी मुस्कुरा कर कहती है, “हां, और तुम वंशी बजाओ, मैं नृत्य करूंगी!”
कोई गृहक्लेश नहीं, कोई रिमोट कंट्रोल की खींचतान नहीं। वहाँ के झगड़े भी ऐसे- “तुमने मेरी माला उठा ली!”
“क्षमा करें, वह माला स्वयं मेरी ओर उड़ आई!”
🌪 *धरती की जोड़ियां*:
संवाद का युद्धक्षेत्र
धरती पर आते-आते वह दिव्यता विलोपित हो जाती है। यहाँ जोड़ियां पहले प्रेम में, फिर भ्रम में, और अंततः ईएमआई में बंधती हैं। विवाह के बाद पहली बातचीत अक्सर यूँ होती है:
पति: "आज क्या बना है?"
पत्नी: "जो मां ने सिखाया था!"
पति: "मगर मां तो कहती हैं कि तुमने कुछ सीखा ही नहीं!"
(और इस पर मां-बेटे की गुप्त यूट्यूब चर्चा प्रारंभ हो जाती है!)
यहाँ जोड़ियां “स्वर्ग से बनी” नहीं लगतीं, बल्कि ऐसा लगता है मानो रेलवे रिज़र्वेशन सिस्टम ने गलती से दो अजनबियों को एक ही कूपे में डाल दिया हो — और अब ज़िंदगी भर साथ जाना है, बिना एसी के।
🌈 *स्वर्गीय प्रेम बनाम घरेलू प्रेम*
स्वर्ग में रति और कामदेव जैसे युगल मिल-जुलकर प्रेम की मिसाल बनते हैं। धरती पर प्रेम ऐसा होता है —
“मैं तुमसे प्यार करता हूँ”
“ठीक है, मगर मम्मी से पूछना पड़ेगा।”
“शादी के बाद भी?”
“हर बात में!”
धरती की जोड़ियां बजट, बर्तन और बच्चों में उलझी होती हैं। प्यार का इज़हार “तुम्हारा मोबाइल चार्ज कर दिया है” या “आज गद्दा धूप में डाल दिया था” जैसे संवादों में छिपा होता है।
🛐 *विवाह-पश्चात स्वर्ग का भ्रम*
कुछ लोग सोचते हैं कि शादी के बाद स्वर्ग मिलेगा — लेकिन उन्हें पता चलता है कि “स्वर्ग का द्वार” कहे जाने वाले सजावट वाले मंडप से जैसे ही बाहर निकले, दरवाज़ा पीछे से बंद हो गया। अब जीवन में हर उत्सव “मायके कब जाना है” और “ससुराल कब आना है”- के राउंड में बदल जाता है।
🎭 जोड़ियां वही... व्यवहार अलग। स्वर्ग की जोड़ियां सिद्धान्त में महान होती हैं — संतुलन, सामंजस्य, शांति।
धरती की जोड़ियां प्रयोगशाला होती हैं — गैस, टेंशन, और टाइम-टेबल। लेकिन फिर भी धरती की जोड़ियां ही सबसे मनोरंजक होती हैं। क्योंकि जहाँ हास्य, संघर्ष और चाय के कप में डूबा प्रेम होता है — वहीं असली जीवन होता है।
वरना स्वर्ग तो शांत है… और बहुत शांत चीज़ें, थोड़ी उबाऊ भी होती हैं।
अतः साथ जिओ, हँसते रहो — चाहे स्वर्ग की जोड़ी हो या धरती की जोड़ी — क्योंकि हँसी ही जीवन का असली ‘इत्रदान’ है!
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