-डॉ. डंडा लखनवी
क्रिकेट-फीवर जबसे भारत पर चढ़ने लगा है आदमी ’इन’ और ’आउट’ के चक्कर में घनचक्कर बन गया है। किसी के लिए काला धन ’आउट’ करना लोकहित है तो किसी के लिए काला धन ’इन’ करना लोकहित है। सत्ता के अन्दर और बाहर इन और आउट की रस्साकसी चल रही है। कम्प्यूटर की भाषा में ‘इन’ इंडिया का संकेतक है। साईं बाबा जब तक चिकिसकों की निगरानी में, अस्पताल में और अपने शरीर में थे तब तक वे ’इन’ थे। अब वे अस्पताल और शरीरिक बंधन दोनों से ’आउट’ हैं। मीडिया में उनके आउट होने की कई दिनों तक जोर-शोर से चर्चा रही। जब तक वे ’इन’ रहे, आश्रम स्वर्णमय रहा। उनके आउट होते ही सोना भी आउट हो गया। शरीर त्यागने के बाद बाबा कहाँ गए जब कोई नहीं बता पा रहा...तो सोने के विषय में कौन बता पाएगा?
अंग्रेजी भाषा में कई प्रकार के मेल हैं-यथा मेल, फीमेल, ई-मेल, जी -मेल आदि आदि। हिंदी भाषा का ’मेल’ मिलावट-बोधक है। मिलावट से चमत्कार पैदा होता है। ’इन’ के पहले यदि ’सच’ मिलाने से अर्थ यू-टर्न ले लेता है और एक नया शब्द ’सचिन’ पैदा होता है। सच और इन का योग बड़ा अनोखा है। सचिन इंडिया में जन्मा है। सचिन इंडिया का सच है। उसके रिकार्डों को सामने रख लोग कहते हैं-’सच+इन+इंडिया’ या ’सचिन इंडिया’। इंडिया सचिनमय है और सचिन इंडियामय। सचिन भारत में कहाँ रहता है सब जानते हैं। मैं सचिन को फोन लगाता हूँ रिस्पांस मिलता है लेकिन ’सच’ को फोन लगाता हूँ तो कोई रिस्पांस नहीं मिलता है।
कहा जाता है राजा हरिश्चन्द्र की सच से गहरी यारी थी। उससे याराना निभाने में उन्हें लोहे के चने चबाने पड़े। दर-दर की खाक़ छाननी पड़ी। शमसान घाट में टैक्स-पेई की उन्होंने अद्भुत मिसाल रखी किन्तु चरित्र पर टैक्स-चोरी का धब्बा नहीं लगने दिया। सच का रास्ता काँटों भरा है। बाद के राजाओं ने काँटों से बचने वाले जूते पहनने शुरू किए अथवा सच से मुख मोड़ बैठे इस संबंध में इतिहास कुछ बोलता नहीं। वह मौन साधे हुए है।
आधुनिक युग में राजा-रानी मतपेटी से जन्म लेने लगे हैं। अत्याधुनिक युग में राजाओं और रानियों की जननी इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन है। माँ-बाप के चरित्र का असर बच्चों पर पड़ता है। वोटिंग मशीनों का उसकी संतानों पर क्या असर पड़ा यह व्यवहार-विज्ञान से पूछिए। इतना ज़रूर है आधुनिक राजा-रानियों की जननी वोटिंग-मशीनों का राजा हरिश्चन्द्र से रक्त-संबंध नहीं है। इसलिए उसकी संतानों का हरिश्चन्द्र की परंपरा निभाने में रुचि नहीं है। आजादी के बाद सरकारी कार्यालयों में नारा लिखा रहता था-’सत्यमेव जयते’। अब यह नारा अपने स्थान पर नहीं दिखता है। उसके विस्थापित होने के दो कारण हैं। वह मिट चुका है अथवा ’असत्यमेव जयते’ द्वारा पिट चुका है।
कहा जाता है राजा हरिश्चन्द्र की सच से गहरी यारी थी। उससे याराना निभाने में उन्हें लोहे के चने चबाने पड़े। दर-दर की खाक़ छाननी पड़ी। शमसान घाट में टैक्स-पेई की उन्होंने अद्भुत मिसाल रखी किन्तु चरित्र पर टैक्स-चोरी का धब्बा नहीं लगने दिया। सच का रास्ता काँटों भरा है। बाद के राजाओं ने काँटों से बचने वाले जूते पहनने शुरू किए अथवा सच से मुख मोड़ बैठे इस संबंध में इतिहास कुछ बोलता नहीं। वह मौन साधे हुए है।
आधुनिक युग में राजा-रानी मतपेटी से जन्म लेने लगे हैं। अत्याधुनिक युग में राजाओं और रानियों की जननी इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन है। माँ-बाप के चरित्र का असर बच्चों पर पड़ता है। वोटिंग मशीनों का उसकी संतानों पर क्या असर पड़ा यह व्यवहार-विज्ञान से पूछिए। इतना ज़रूर है आधुनिक राजा-रानियों की जननी वोटिंग-मशीनों का राजा हरिश्चन्द्र से रक्त-संबंध नहीं है। इसलिए उसकी संतानों का हरिश्चन्द्र की परंपरा निभाने में रुचि नहीं है। आजादी के बाद सरकारी कार्यालयों में नारा लिखा रहता था-’सत्यमेव जयते’। अब यह नारा अपने स्थान पर नहीं दिखता है। उसके विस्थापित होने के दो कारण हैं। वह मिट चुका है अथवा ’असत्यमेव जयते’ द्वारा पिट चुका है।
वाह डॉ. साहब..... बहुत बढ़िया व्यंग्य.......बधाई....
जवाब देंहटाएंरचनाकार पर मेरी कविता को पढ़्ने और अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराने के लिये धन्यवाद ....
बहुत सटीक विश्लेषण बड़े भाई ....
जवाब देंहटाएंसलीकेदार मीठा व्यंग्य लेख...
आपका ये व्यंग बहुत पसन्द आया. इसके लिए आपका आभार. आपके ब्लॉग पर आना सफ़ल रहा. आपको शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएं’सत्यमेव जयते... आज कल इस का मतलब कुछ यु हे... जो सत्य(सच) मे मेवा खायेगा, वो ही जीता जायेगा
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति.धन्यवाद
bahut bariya lekh hai ji
जवाब देंहटाएंLas Vegas Holiday Packages
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