17 मई 2011

लमहों ने ख़ता की थी, सदियों ने सजा पायी


                                                                   -डॉ० डंडा लखनवी

दार्शनिक अरस्तु का कथन है मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। मैं कहता हूँ मनुष्य मूल रूप से प्राणी (Man is animal) है। शिक्षा से वह संस्कारित होता है। फलत: वह सामाजिक प्राणी कहलाने योग्य बनता है। उसे प्राणी से सामाजिक प्राणी बनाने में यूँ तो अनेक संस्थाएं कार्य कर रही हैं। क्या शहर क्या देहात सभी जगहों पर......प्राथमिक पाठशालाएं  हैं पूजागृहों की देश भर में कमी नहीं है। टी०वी० चैनलों पर धार्मिक उपदेश देने वाले लोग आदमी को चरित्रवान बनाने की कवायद चौबीस घंटे व्यस्त रहते हैं। पुलिस, प्रशासन, कोर्ट-कचहरी, थाना, जेल आदि सभी तो मनुष्य के चरित्र को सुधारने में हलकान हैं। अरबों-खरबों रूपए का बजट सबके चरित्र को सवांरने में व्यय हो रहा है। फिर भी "कुत्ते की दुम टेढ़ी की टेढ़ी" वाली कहावत चरितार्थ होती है। वांछित परिणाम हासिल क्यों नहीं हो रहे हैं? आखिर आदमी को आदमी बनाने वाले हमारे प्रयासों में कहाँ कमी है? जिन एजेंसियों के कंधों पर मानवीय चरित्र को सुधारने का दायित्व है वे हाथी के दिखाने वाले दाँत तो नहीं बन गए हैं? उनकी करनी और कथनी में भेद तो नहीं है? क्या इसे तटस्थ भाव से जाँचने-परखने की जरूरत नहीं है?

चरित्र मानवीय-मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता से सवंरता है। सदाचार की राह पर चलने के लिए व्यक्ति को स्वयं पहल करनी होती है। चरित्रवान बनने के लिए आत्म-निरीक्षण और अवगुणों से छुटकारा पहली शर्त है। कोई किसी को जबरन चरित्रवान नहीं बना सकता  है। संयम और त्याग की आँच पर  ख़ुद को तपाना पड़ता है। हरामख़ोरी से बचना होता है। चरित्र बाहरी दिखावा नहीं अभ्यांतरिक शुद्धता है। चरित्र व्यक्ति के आचरण और व्यवहार से झलकता है। नेता जी सुभाषचंद बोस, सरदार भगतसिंह, रामप्रसादबिस्मिलआदि ने कभी सोचा न होगा कि जिस आजादी को प्राप्त करने के लिए वे जीवन की कुर्बानी दे रहे हैं वह भ्रष्टाचार के कारण  इतनी पतित हो जायगी। आजादी को खिलौना समझने वालों को कविवर बृजकिशोर चतुर्वेदीब्रजेशव्यंग्य के कटघरे में खड़ा कर कहते हैं-’कुर्ते सिलवा खादी के। मज़े लूट आजादी के॥चरित्र का यह संकट देश और समाज के लिए बड़ा घातक है। हमारे क्षुद्र स्वार्थ भावी पीढ़ी के लिए अभिशाप हैं।

मेरे एक कवि मित्र "तरंग" ने बैकुंठ की परिभाषा दी है। वे  'वय' का निषेधात्मक अर्थनहीं’ और कुंठ का अर्थ कुंठा मानते  हैं।अत: वह स्थान जहाँ कुंठा न हो। यदि परिवार के सदस्यों के बीच कुंठा नहीं है तो वहाँ बैकुंठ है। यदि पड़ोसियों के बीच कुंठा नहीं है तो वहाँ बैकुठ है। सुचरित्र से कुंठाओं  की गाँठ खुल जाती है चरित्र-संकट जहाँ  है, वहाँ नरक है। हमें सुखद भविष्य के लिए चरित्र-संकट से उबरना ही होगा। जियो और जीने दो की भावना का विकास करना होगा। आइए हम अपने-अपने गिरहबानों में झाँकें, अपना-अपना जमीर टटोलें। सोचें कि हमने देश और समाज को क्या दिया? सब कुछ एक दिन में ठीक हो जाएगा ऐसा संभव नहीं है। ऐसा सोचना भी गलत हैसुधारने का संकल्प लेने से सुधार होगा। सुधार एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। हमें मिलजुल  कर इसे प्रकिया को गतिशील बनाना है। 
"रंग लाएगी किसानी। यह धरा होगी सुहानी॥
आने वाली कोपलों को- देके देखो खाद-पानी॥"


24 टिप्‍पणियां:

  1. रंग लाएगी किसानी। यह धरा होगी सुहानी॥
    आने वाली कोपलों को- देके देखो खाद-पानी॥"bahut uttam.yadi khaad aur paani milaavat ka naa hua to jaroor aane vaali fasal uttam hogi.dr.Lakhnavi sahab bahut achcha uttam lekh likha hai aapne.koi jabran charitrvaan nahi ban sakta.charitra to khoon me hota hai.dr.saahab aapke article heading ka pahle word par gor farmaayen i think the correct word is lamhon....shayad printing mistake hai.is uttam vishay par likhne ke liye badhaai.

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  2. हमें स्वयं को सुधारना जरुरी है ! स्वयम में ही स्वयंभू है !

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  3. प्रेरक लेख....
    'खुद सुधरेंगे -जग सुधरेगा' ....आज इसी सिद्धांत पर चलने की जरूरत है |

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  4. पहले लोग संस्कारवान इसलिए थे क्योंकि लोग स्वयं को संस्कारित बनाना चाहते थे.अब लोग दूसरों को संस्कारित बनाना चाहते हैं, स्वयं के बारे में तो सोचते ही नहीं. तब तो ऐसा ही होगा न.

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  5. रंग लाएगी किसानी। यह धरा होगी सुहानी॥
    आने वाली कोपलों को- देके देखो खाद-पानी॥"
    आप के इस सुंदर लेख से सहमत हे जी , हम को स्व्यम को बदलना हे दुसरो को नही तभी हम सब एक स्वस्थ समाज ला पायेगे, धन्यवाद

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  6. ग लाएगी किसानी। यह धरा होगी सुहानी॥
    आने वाली कोपलों को- देके देखो खाद-पानी
    --
    बहुत सही!

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  7. बहुत ही सुन्दर, विचारणीय और प्रेरक लेख! उम्दा प्रस्तुती!

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  8. बहुत प्यारा आवश्यक लेख लिखा है आपने... शुभकामनायें आपको !!

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  9. 'खुद सुधरेंगे -जग सुधरेगा'

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  10. "रंग लाएगी किसानी। यह धरा होगी सुहानी॥
    आने वाली कोपलों को- देके देखो खाद-पानी॥"
    nihsandeh

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  11. सच है बिना पढेै नर पशू कहावै
    पढ लिख कर मानुस बन जावेै
    बृजेश की का व्यंग्य सही है।
    तरंग जी की परिभाष सही है
    शेर शान दार।' रंग लायेगी किसानी' शरद जी ने कहा था खेती होगी आम आदमी की खाद डलेगी खास आदमी के पैाघे पनपेंगे ।
    आपका आलेख शानदार

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  12. हर व्यक्ति खुद को सुधार ले तो अपने व्यवहार से दूसरों को भी सिखा सकता है , सिर्फ भाषण देने से नहीं ...
    अच्छा आकलन !

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  13. bahut hi sundar kahani hai aapki kya bat hai. Apne to Lamho aur sadiyo ko mel to bahut hi samjhdari se kiya hai.
    Cheap Flights to Bali,
    Cheap flights to Kuala Lumpur,

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  14. क्या होगी धरा सुहानी, चाहे जितनी करें किसानी.
    जब जड़ पर ही हों बैठे, चोर, उचक्के, हरामी,

    गोपालजी

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  15. व्यक्ति में वह अंकुर लगाना चाहिए जो आगे चल कर मानवीयता के फल दे. ज़मीर को कुरेदती पोस्ट.

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  16. विचारणीय और उम्दा आलेख एक सीख देता हुआ।

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  17. बेहद सटीक एवं सार्थक अभिव्‍यक्ति ।

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  18. ’कुर्ते सिलवा खादी के। मज़े लूट आजादी के॥’

    बैकुंठ की परिभाषा दी है...........अत: वह स्थान जहाँ कुंठा न हो।

    DHANY HO GAYE AAPKI YE POST PADH KAR....DAIRY KAR LETE HAIN ISE.....
    SHUKRIYA.

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  19. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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