26 मई 2011

असली सालिग्राम हैं या नकली सालिग्राम हैं

                                                     -डॉ० डंडा लखनवी

आज भवन-निर्माण कराते हुए कुछ समय राजगीर और मजदूरों के बीच बिताना पड़ा। उनसे वार्तालाप करने के दौरान एक मज़दूर ने एक संस्मरण सुनाया। जिसे मैं यहाँ साझा कर रहा हूँ।

"गाँव में मेरे पड़ोसी के घर पर सत्यनारायण की कथा होनी थी। कथा को कराने के लिए सुदूर गाँव से पुरोहित बुलाने का काम मुझे सौंपा गया था। पुरोहित को बुलाने के लिए मैं उनके गाँव पहुँचा और कथा कराने का निमंत्रण दे कर साथ चलने का अनुरोध किया। पुरोहित जी निमंत्रण स्वीकार कर साथ चल पड़े। काफी दूर चले आने पर एक बाग के निकट उन्हें याद आया कि सालिग्राम की बटिया वो घर पर ही भूल आए हैं। वापस लौट कर बटिया लाने का समय न था। कथा का मुहूर्त निकला जा रहा था। पु्रोहित जी के सामने विकट समस्या थी। अचानक उन्होंने मुझसे कहा - "बच्चा! इस जामुन के पेड़ पर चढ़ जा।" मैं जामुन के पेड़ पर चढ़ गया। फिर उन्होंने कहा- "एक बढ़िया सा जामुन तोड़ कर मुझे दे।" उनके एक कहने के अनुसार मैंने एक बड़ा सा जामुन उन्हें तोड़ कर दे दिया। कथा कराते समय मैंने देखा  क़ि  पुरोहित जी ने जामुन को सालिग्राम की जगह पर रख दिया और पूरी कथा संपन्न करा दी। सालिग्राम की जगह पर बैठे जामुन को कोई जान नहीं पाया कि असली सालिग्राम हैं या नकली सालिग्राम हैं।"

12 टिप्‍पणियां:

  1. यह दुनिया का भ्रम है बस उसकी पूर्ति पंडित ने भी कर दी उसका काम भी चल गया ..और यजमान भी खुश हो गया ...!

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  2. साक्षात ईश्वर की उनुप्ल्ब्धता के कारण ही हम उसकी पूजा उसकी प्रतीक के रूप में करते हैं, अर्थात हमारे धार्मिक कार्यों में प्रतीकों का चलन आम बात है, जब हम पत्थर को देवी या देवता का प्रतीक के रूप में पूज सकते हैं तो फिर सालिग्राम के प्रतीक के रूप में जामुन क्यों नहीं ? हाँ ! हमारी आस्था में यदि जरा भी ईमानदारी होगी तो जाहिर है हमें जामुन में भी सालिग्राम की ही छवि नजर आएगी, अन्यथा " जाकी रही भावना जैसी,प्रभु मूरत दिखे तिन तैसी "
    आभार उपरोक्त पोस्ट हेतु........

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  3. पाखंडी लोग,पाखंडी पुजारी और पाखंड पूजा का इससे बड़ा और क्या सबूत होगा ?'सत्य'पर किसी का ध्यान नहीं तो सत्यनारायण पूजा का क्या अर्थ?

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  4. आस्था से बड़ी कोई चीज नहीं ! मानो तो देव नहीं तो पत्थर !

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  5. अरे यह लेख तो मैने पढा भी था, ओर टिपण्णी भी की थी?

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  6. आदरणीय लखनवी जी आपके इस लेख का ज़वाब मैं अपने एक व्यंग से देना चाहूँगा कृपया टिप्पड़ी ज़रूर करें.

    पंडित की विद्वता पर
    कोई शक करे और प्रशन पूछे
    किसी की क्या है मजाल,
    डर लगता है सबको
    उस अनहोनी का
    कि कहीं और न बिगड़ जाए
    बिगडे वक़्त कि चाल,
    चाहे ख़ुद अपने कर्मों से पाले हों
    जिंदगी के सारे बवाल,
    क्योंकि कोई पिता
    बच्चों कि जिंदगी मैं
    नहीं घोलता ज़हर
    और नाही पालता कोई जंजाल,

    पर पिंडदान और पूर्वजों को तर्पण के वक़्त
    दरिया के किनारे
    एक मसखरे यजमान ने
    पण्डे से दाग दिया एक सवाल,
    और पूँछ ही लिया
    पंडित जी के स्वर्गवासी पितरों का हाल,
    मेरे पितरों का उद्धार करने वाले श्रीमन
    उस लोक मैं क्या है आपके पितरों का हाल,

    पोथी - पत्रा से डरकर, जीकर या मरकर,
    रुपया दो रूपया, अन्न-जल, दाना - पानी
    अपने पितरों को हम तो ऊपर पहुंचा देते ,
    आप भी अपने पितरों को
    ऐसा ही कुछ करते हैं
    या उन्हें यूँ ही टरका देते हैं,

    पिंडदान मैं चढा माल
    बटोरता हुआ पंडा मुस्कराया
    बोला हमें पुश्तों से
    यजमानों का ही सहारा है,
    इस लोक मैं हमें आपसे
    उस लोक मैं हमारे बाप को
    आपके पितरों से गुज़ारा है
    ऊपर माल भेजने का जो चमत्कार
    आप यहाँ हमसे करा रहे हैं,
    उस लोक मैं हमारे बाप
    आपके पितरों को
    कुछ ऐसे ही चरा रहे हैं,

    हमें एक तरफ़ लुटा हुआ
    निर्विकार यजमान
    दूसरी तरफ़ दरिया मैं उतराता
    गिध्धों द्वारा नोचा जाता
    निश्चेष्ट शव तो नज़र आ रहा था,
    पर शव और यजमान की चेतना मैं
    अन्तर क्या है
    मैं यह नहीं समझ पा रहा था,

    "गोपाल जी"

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  8. when a child revolts and do not abide by the parents, they controls by every possible means. If they given up the child to whatever he like what it would have happen

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