04 जून 2011

आस्था को अग्नि-परीक्षा देने से मत रोकिए

                                               -डॉ० डंडा लखनवी

आजकल आस्था का ढ़ोल बड़ी जोरों से पीटा जा रहा है। आम जनता मीडिया के प्रवाह में बह जाती है। जब होश आता है तब बड़ी देर हो चुकी होती है। आस्था यह एक संवेदनशील मुद्दा है। इस पर गंभीरता-पूर्वक विचार किए जाने की आवश्यकता है। व्यक्ति की आस्था उसका नितांत निजी विषय है। किसी की आस्था से  छेड़छाड़ करने का किसी को हक़ नहीं होता है। यह दिल का और घर की सीमा का विषय है। जब आस्था घर की चाहारदिवारी से बाहर आ जाती है तो वह समुदायिक विषय-वस्तु बन जाती है। उसके घरके बाहर आने से अनेक लोग प्रभावित होते हैं। ऐसी दशा में उसे सत्य की कसौटी पर कसे जाने की आवश्यकता होती है। अगर ऐसा नहीं किया जाता है तो कुछ व्यकित्यों की आस्था जाने-अनजाने पूरे समुदाय टोपा बन जाती है। वह टोपा सबके सिर पर फिट आए यह कैसे संभव है? देश आस्थाओं से नहीं कानून-व्यवस्था से अनुशासित होता हैआस्था और पाखंड दोनों अलग- अलग चीजें हैं। इन दोनों में आसानी से रिस्ता बनाया जाता रहा है। आस्था अगर शहद है तो पाखंड विष है। आप दोनों को एक साथ नहीं मिला सकते हैं।

पिछले कई महिनों में अखबारों में ऐसे समाचारों को आपने पढ़ा है। जिनमें साधु-वेश में आस्था के नाम पर पाखंड़ियों ने महिलाओं को फंसाया और बलात्कार किया। पकड़े जाने पर उन्होंने अपनी हवस का शिकार बनाए जाने बातें स्वीकार कीं। आस्था के नाम पर पशुबलि और नरबलि चढ़ाए जाने के समाचार यदा-कदा आज भी सुर्खियों में आते रहते  हैं। आस्था के नाम पर वाजिब कीमत चुकाए बिना भू माफिया सार्वजनिक जमीन को लूट रहे हैं। जन-सहयोग से वे पहले जमीन घेरते है और बाद में उसे निजी संपत्ति बना लेते हैं। यह काम सुनियोजित तरीके से अविकसित क्षेत्रों के चौराहों के निकट खूब होता है। जब क्षेत्र विकसित हो जाता है तो उस स्थान को व्यावसायिक बना दिया जाता है। ऐसी आस्था से कुछ लोग लाभ की स्थिति में आ जाते है किन्तु को कुछ के हिस्से में हानि ही हानि आती है। आस्था के नाम पर यह सामुदायिक हितों पर कुठाराघात  है। यह कैसी आस्था है? आस्था निजी स्वार्थों की कठपुतली नहीं है। इसकी ओट में जो लोग अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं वे उनका यह प्रयास रहता है कि समाज में विवेक-शून्यता बनी रहेआस्था कभी किसी से अपनी आँख, मुंह, नाक, कान बंद करने के लिए नहीं कहती है। वह सत्य की आँच से घबराती भी नहीं है और न वह अग्नि-परीक्षा देने से कतराती है। आस्था अग्नि-परीक्षा से और चमकती है। आस्था को अग्नि-परीक्षा देने से मत रोकिए। उसे संसार के सामने असली कांति के साथ आने दीजिए। 

इस संबंध में मुझे एक कथा घटना याद आ गई- "बेसिक कक्षा में पढ़ने वाले बच्चे को एक दिन अध्यापक ने पढ़ाया कि गंगा नदी हिमालय पर्वत से निकलती है। अगले दिन वह बच्चा अपनी माँ के साथ धार्मिक प्रवचन सुनने जाता है। वहाँ बताया जाता है कि गंगा भगवान शंकर की जटाओं से निकलती है।" अब आप बताएं- "बच्चा अध्यापक की बात माने अथवा उपदेशक की? यह प्रश्न उससे प्रतियोगी परीक्षाओं आगे पूछा जाएगा तो वह क्या जवाब देगा?"

22 टिप्‍पणियां:

  1. कितनी सहजता से आपने, हमें ये सब समझाया है, आस्था और पाखंड में ज्यादा अन्तर नहीं है। भोले-भाले लोग आसानी से इनके चंगुल में आ जाते है।

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  2. आदरणीय डंडा लखनवी जी आपकी बात से सत्य प्रतिशत सहमत हूँ |मागे आस्था का प्रचार करके शोषण किया जाये तो वह आस्था व्यक्तिगत नहीं रह जाती अच्छा आलेख आँखें खोलने के लिए आभार........

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  3. सही कहा आपने। धार्मिक आस्‍थाएं सामाजिक जीवन से हमेशा से अनावश्‍यक दखलंदाजी करती रही हैं।

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    कौमार्य के प्रमाण पत्र की ज़रूरत?
    ब्‍लॉग समीक्षा का 17वाँ एपीसोड।

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  4. आपकी बातों से पूर्णतः सहमत हूँ ... सही आस्था वही है जो परीक्षा से घबराता नहीं ... अगर समालोचना से डर गए या नाखुश हुए ... उसका मतलब डाल में कुछ काला है ...

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  6. बहुत सुंदर आलेख,सब कुछ सत्य है,आस्था परीक्षा से नहीं घबराती,
    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  7. सही कहा आपने,आस्था व्यक्तिगत और निजी मामला है.साथ ही साथ बड़ा नाज़ुक भी.

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  8. फिर भी कुछ ऐसी बाते होती है , जिन्हें आस्था से भरोसा करना ही पड़ता है ! जैसे पिता का परिचय माँ द्वारा ! अंतर हमारे ज्ञान और सूझ - बुझ पर है !

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  9. वाजिब मुद्दा उठाया है आपने गंगा के सन्दर्भ में .आगे बताया जा सकता है शिव का आवास हिमालय है .जहां शिव समाधिस्थ हैं .निर्द्वन्द्व हैं सब प्राणी प्रकृति के संग एकात्म हैं .

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  10. "आस्था कभी किसी से अपनी आँख, मुंह, नाक, कान बंद करने के लिए नहीं कहती है। वह सत्य की आँच से घबराती भी नहीं है और न वह अग्नि-परीक्षा देने से कतराती है। आस्था अग्नि-परीक्षा से और चमकती है। आस्था को अग्नि-परीक्षा देने से मत रोकिए। उसे संसार के सामने असली कांति के साथ आने दीजिए।"

    यही है आस्था की सार्थकता

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  11. mudda vakai gambhir hai lekin utna hi vyaktigat hai.har ek ko sochne ki jaroorat hai. achchhe lekh ke liye dil se Badhai!!!

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  12. आज पुन: आपकी पोस्‍ट पढी, तो फिर कमेंटकरने का जी चाहा। इस भावना के प्रचार प्रसार की जरूरत है। आप यह काम कर रहे हैं, अच्‍छी बात है।

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    बाबूजी, न लो इतने मज़े...
    भ्रष्‍टाचार के इस सवाल की उपेक्षा क्‍यों?

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  13. बहुत ही विचारणीय लेख .....

    आस्था और पाखण्ड का अंतर जानना जरूरी है

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  14. Dear sir ....I like your point of view. I also like SUG ji's comment. Your post is a must read post. Congrats for such a meaningful post.

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  15. बिलकुल सही कहा आपने पाखंडी लोग आस्था के नाम पर अपने स्वार्थ का ढोंग फैला कर आम जनता को उलटे उस्तरे से मूध्ते हैं.

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  16. Kisi rote ko hasana aur kashtton may bhi muskurana, dushmani ko mitana aur dosti banana.........MAI ISI ASTHA KA PALAN KARTA HUN..DHANYAWAD

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  17. Aagar duniya me ek jaise log hote to kisa hota na koi chota hota aur na hi koi bara sub ek saman hote to kitna acha hota.
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  18. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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