(1)
सागर के सीप हो गए।
लक्ष्य के समीप हो गए।।
शिक्षा जब मिल गई हमें-
अपने ही दीप हो गए।।
(2)
खडे़ कुछ सवाल हो गए।
जान को बवाल हो गए।।
समझा था जिनको कर्णधार-
देश के दलाल हो गए।।
(3)
तिल से जो ताड़ हो गए।
राई से पहाड़ हो गए।।
निधियाँ उनको फली मगर-
गाँव-घर उजाड़ हो गए।।
(4)
अंधकार को दूर भगाओ।
शिक्षित बन गुथ्थी सुलझाओ।
सभी रास्ते खुल जाएंगे-
अपने दीप स्वयं बन जाओ।।
सचलभाष- 9451144480
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