17 दिसंबर 2010






जब उनकी डिग्री देखी





पक्के       वो        मनमानी   में।
डिप्लोमा            शैतानी      में॥


कभी  -  कभी     वो    जेल  चले-
जाते      हैं        मेहमानी    में॥


कई      बार    
हैं     लड़े    मगर-
हार     गए       परधानी      में॥


चमक      रहे       काले     धंधे-
चमचों     की    निगरानी    में॥


चोर,   उचक्के,   रहजन       हैं-
खुश      उनकी   कप्तानी   में॥


मीलों    भूमि    दबाए  फिर भी-
 
चर्चित      हैं      भूदानी     में॥


चाह   रहे    हैं   नाम    जोड़ाना-
स्वतंत्रता         सैनानी       में॥
 

जब    उनकी      डिग्री    देखी-
एम०ए०      जहरखु़रानी     में॥



12 टिप्‍पणियां:


  1. सुबह सुबह खराब कर दी आपने नेता पूजा करके ...
    हमें भी हाथ जोड़ कर खड़ा रहना पड़ा न आपके पीछे इस खल वंदना में...
    मगर बड़े भाई के पीछे तो रहना ही है !
    शुभकामनायें

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  2. बेहतरीन डंडा साहब...बधाई स्वीकारें...

    नीरज

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  3. कभी - कभी वो जेल चले-
    जाते हैं मेहमानी में॥

    क्या बात है डंडा जी.सुन्दर व्यंग है.

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  4. बहुत बढिया डंडा चलाया साहब
    वाह वाह
    शुभकामनाये

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  5. डॉ डंडा जी, बहुत ही बढ़िया व्यंग्यात्मक ग़ज़ल है .. हर एक शेर एकदम लाजवाब है ... हमारे देश और समाज में यही तो होता है, यही हकीकत है ..

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  6. meree samjh me ye hee hai dhardar paina lekhan.......itnee khoobsooratee se likh jana sab ke bas kee baat nahee.......
    Aabhar.......

    kshnikae bhee teeno ek se bad kar ek hai.

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  7. आपकी टिप्पणी के लिए बहुत-बहुत साधुवाद! सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी

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  8. आदरणीय डंडा साहब जी
    नमस्कार !
    ........बढ़िया व्यंग्यात्मक ग़ज़ल है ..

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