(कुँवर कुसुमेश) |
दौरे - मुश्किल से जो बचा जाए।
मुश्किलों में वही फँसा जाए॥
ये उलट फेर का जमाना है-
आजकल किसको क्या कहा जाए॥
वक़्त आँखें तरेर लेता है-
कोई हल्का -सा मुस्करा जाए॥
ख़ुद को निर्दोष प्रूफ कर देगा-
बस इलेक्शन का दौर आ जाए॥
तब तलक काम है निपट जाता-
जब तलक कोई सूचना जाए॥
है ’कुँवर’ इस उम्मीद पर मौला-
ध्यान तुझको मेरा भी आ जाए॥
पता -4/738-विकास नगर,
लखनऊ-226022
सचलभाष-09415518546
सशक्त रचना से परिचय करवाने के लिए डॉ डंडा लखनवी को आभार...
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें !
कुँवर कुसुमेश जी के ग़ज़ल से रु-ब-रु कराने के लिए शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ग़ज़ल...दिलचस्प अंदाज़ है कहन का..बेहद खूबसूरत...वाह
जवाब देंहटाएंनीरज
सुंदर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंहिन्दी हमारे देश और भाषा की प्रभावशाली विरासत है।
डॉ डंडा जी को हार्दिक धन्यवाद ,कुंवर जी की गजल पढवाने के लिए
जवाब देंहटाएंये आपने लाइम लाईट के नीचे कमेन्ट का आप्शन नहीं दिया ,वरना थोड़ा बहुत चूना हम भी लगा देते