01 अगस्त 2010
सामाजिक व्यवस्था
-डॉ० सुरेश उजाला
हमारे पूर्वज-
आदिकाल में-
वानर थे-वनमानुष हुए।
शनै-शनै-
लम्बे अंतराल के बाद-
मानव विकास के पथ पर-
इंसान बने।
इंसान की धूर्तता-
और
चालाकी के कारण-
गुलाम बने -शोषित बने।
जिनकी पीठ पर-
गर्म सलाखों से-
लगाया जाता था-ठप्पा-
पहचान के लिए।
ताकि-
गुलाम-गुलाम रहे-
इसका या उसका-
लगाई जाती थी- बोली-
सरे बाजार-
बेचने-खरीदने की।
बहुत-
शोषण किया-
इस मानव-सभ्यता ने-
समाज में-
चातुर्य वर्ण-व्यवस्था के तहत-
इंसान द्वारा-
इंसान का।
जिसका असर-
आज भी मौजूद है-
भारतीय समाज में।
108-तकरोही, पं० दीनदयाल पुरम मार्ग,
इंदिरा नगर, लखनऊ-226016,
सचलभाष-09451144480
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सुन्दर रचना है!
जवाब देंहटाएं--
मित्रता दिवस पर बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
आदरणीय भाई साहब। आपकी मंगलकामनाओं के
जवाब देंहटाएंप्रति बहुत-बहुत आभार.....।