-डॉ० डंडा लखनवी
लोग जो चिकने घड़े हैं।
लग रहा वो ही बड़े हैं॥
आप हैं यदि सदाचारी-
पंक्ति में पीछे खड़े हैं ?
हैं लड़ाकू वही सैनिक-
जो चुनावों में लड़े हैं॥
भूमि पर कुछ और ही है-
कह रहे कुछ आँकड़े हैं॥
समस्याएं हल हों कैसे-
अक़्ल पर ताले पड़े हैं॥
भूख से बेहाल जनता-
अन्न के बोरे सड़े हैं॥
गोलियाँ ऑनरकिलर की-
प्रेमियों के चीथड़े हैं॥
उनकी बातों की हक़ीक़त-
बस सियासी पैतड़े हैं॥
चाहती बदलाव दुनिया-
हम न बदलेंगे, अड़े हैं॥
चाहती बदलाव दुनिया-
जवाब देंहटाएंहम न बदलेंगे, अड़े हैं॥
waah bahut khoob
बहुत सटीक!!
जवाब देंहटाएंआपकी शुरुआती लाइनें जैसे हकीकत है , आज ईमानदार बेवकूफ कहलाता है , बेईमानों का समूह जो कहेगा वही ठीक है !
जवाब देंहटाएंवर्तमान परिपेक्ष में सच का आइना दिखाती एक बेहतरीन रचना.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंराजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
लोग जो चिकने घड़े हैं।
जवाब देंहटाएंलग रहा वो ही बड़े हैं॥
बहुत ज़बरदस्त..... एकदम सटीक!
बहुत बढ़िया जनाब!
जवाब देंहटाएं--
बहुत ही सटीक सटायर है!
एक -एक पंक्ति सत्य के बेहद करीब ...!
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक...
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा पढ़कर
सटीक.....
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंभूख से बेहाल जनता-
जवाब देंहटाएंअन्न के बोरे सड़े हैं॥
सटीक रचना .
यथार्थ बयान करती
चाहती बदलाव दुनिया-
जवाब देंहटाएंहम न बदलेंगे, अड़े हैं
ना बदलेंगे ना बदलने देंगे...वाह...बेहतरीन ग़ज़ल डंडा साहब...आनंद आ गया...
नीरज