-अरुण मिश्र
बेसबब गुल न मेरे सिम्त उछाला होता।
तो ये निस्बत का भरम हमने न पाला होता।।
ज़िन्दगी बिन तेरे तारीक़ियों का जंगल है।
तू चला आता तो कुछ मन मे उजाला होता।।
हम सँभल सकते थे कमज़र्फ़ नहीं थे इतने।
काश उस शोख़ ने पल्लू तो सँभाला होता।।
तुम भी पा जाते ‘अरुन‘ अश्क़ के ढेरों मोती।
इश्क़ के गहरे समन्दर को खँगाला होता।।
शाकुन्तलम, 4/113-विजयन्त खंड,
गोमती नगर, लखनऊ-226010
सचलभाष-+91-9935232728
हम सँभल सकते थे कमज़र्फ़ नहीं थे इतने।
जवाब देंहटाएंकाश उस शोख़ ने पल्लू तो सँभाला होता।।
वाह लाजवाब गज़ल
बधाई
धन्यवाद निर्मला जी.
जवाब देंहटाएं- अरुण मिश्र
धन्यवाद निर्मला जी.
जवाब देंहटाएं- अरुण मिश्र