एक लम्बी उड़ान भी तो है।
इसलिए कुछ थकान भी तो है।।
जंग जीती ज़रूर है हमने -
जिस्म लोहूलुहान भी तो है॥
हौसला चाहिए मुसीबत में-
जि़न्दगी इम्तिहान भी तो है॥
मुश्किलों मे भी डालता है वो-
पर ख़ुदा मेहरबान भी तो है॥
आँख के सामने तो मंजिल है -
फ़ासला दरमियान भी तो है॥
हलचलों मे यहाँ की शामिल हूँ-
उस तरफ का रुझान भी तो है।।
कह के ये काट दी हमारी बात-
मुँह में अपने जु़बान भी तो है॥
फड़फड़ाये न क्यों परिंदा ये-
ऐ 'नवीन' इन में जान भी तो है॥
227-विजय नगर कालोनी,
कानपुर रोड, लखनऊ-226019
सचलभाष-9415094950
14 जुलाई 2010
जिस्म लोहूलुहान भी तो है.........
- नवीन शुक्ल
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Well crafted verse. Congrats!
जवाब देंहटाएं- Arun Mishra.
अति सुन्दर.....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविता.
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