(चित्र-गुगल से साभार) |
थू-थू, थू-थू, थू-थू, थू।
जननायक हैं या डाकू?
धोती और लंगोटी पे-
क्यों तुम जीते थे बापू?
बापू तेरे चेलों के-
चालचलन में क्यों बदबू?
तुमने सत्याग्रह रक्खा-
ये रखते कट्टे- चाकू?
कहने को जनसेवक ये-
किन्तु वास्तव में पेटू?
खु़द मनमाना वेतन लें-
जनता को देते आँसू॥
था वो अनाज भूखों का-
वो बोले कि सड़ जा तू॥
भूखी जनता चिल्लाती-
ये पीते, खाते काजू॥
नेतागीरी धंधा क्या-
उसमें क्या रक्खे लड्डू?
युवा हाथ को काम नहीं-
मंहगाई है बेकाबू॥
कहाँ मीडिया सोयी है-
कहाँ गया उसका जादू?
सही कहा आपने आज बापू अपने चेलों को देख कर क्या सोचते होंगे पर चेले तो गुरु को भूल गए अच्छी रचना ,बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया,
जवाब देंहटाएंकृपया अपने बहुमूल्य सुझावों और टिप्पणियों से हमारा मार्गदर्शन करें:-
अकेला या अकेली
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंहिन्दी भारत की आत्मा ही नहीं, धड़कन भी है। यह भारत के व्यापक भू-भाग में फैली शिष्ट और साहित्यिक भषा है।
सटीक प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंसटीक,अच्छी रचना,बधाई......
जवाब देंहटाएंबाऊ जी,
जवाब देंहटाएंनमस्ते!
सत्य वचन!
आशीष
shandar aevam jandar rachna ke liye badhai
जवाब देंहटाएं- aman agarwal "marwari"
khatima