आज बूढ़ों को आर्थिक संकट बढ़ाने में सहायक मानने वाले एक आलेख को पढ़ कर बड़ा क्षोभ हुआ। अपनी बात को सही सिद्ध करने के लिए अथवा मूल विषय से आम जनता का ध्यान बटाने के लिए कैसे-कैसे तर्क और आँकड़े दिए जाते हैं। वस्तुत: सच्चाई कुछ और लगती है। गेट और डंकल समझौते के तहत भारत में अब खुली अर्थ व्यवस्था ने अपने पैर पसार लिए हैं। जनता के पैसों से खडे़ किये सार्वजनिक उद्योगों को धीरे-धीरे खोखले हो गए। यही नहीं उनको औने-पौने दाम पर पूंजीपतियों के हाथों सौपा जा रहा है। परंपरागत कुटीर उद्योग की अवधारण छिन्न-भिन्न हो चुकी है। आम जनता के हितार्थ राज्य के द्वारा की जाने वाली कल्याणकारी योजानाएं खस्ता हाल स्थिति में हैं। सरकारें उनसे अपना हाथ खीच रही हैं। जनता को उसके हाल पर छोड़ देना, विलंबित न्याय की स्थिति पैदा करना भी शोषण का तारीका है। बेरोजगारी का आलम ये है कि युवा वर्ग को अपने माँ-बाप बोझ लगने लगे है। पूंजीवाद की एक नीति रही है --’यूज एण्ड थ्रो’।
भारत में अब उसका रंग स्पष्ट दिखाई पड़ने लगा है। व्यक्ति जब तक युवा रहे उसे नीबू की तरह निचोड़ कर रस निकाल लो और जब वह बूढ़ा हो जाए तो उससे उसके जीवन का हक़ भी छीन लो।
युवावर्ग के पास उत्साह एवं श्रमबल होता है तो बूढ़े लोगों के पास अनुभव का खजाना। दोनों के सहयोग से उत्पादकता में वॄद्धि होती है और आर्थिक संकट दूर होता है। प्राचीन काल में भारत का लौह उद्योग, वस्त्र उद्योग, जहाजरानी उद्योग, रसायन उद्योग इसी आधार पर खड़े थे। भारत सोने की चिड़िया उसी दम पर कहलाता था। आर्थिक संकट दोषपूर्ण योजनाएं, अकुशल नेतॄत्व तथा भ्रष्टाचार से उपजता है। सुधी पाठक अब आप बताएं कि देश में आर्थिक संकट उपजाने में दोषपूर्ण योजनाएं, अकुशल नेतॄत्व तथा भ्रष्टाचार सहायक हैं अथवा बूढ़े माँ-बाप।
युवावर्ग के पास उत्साह एवं श्रमबल होता है तो बूढ़े लोगों के पास अनुभव का खजाना। दोनों के सहयोग से उत्पादकता में वॄद्धि होती है और आर्थिक संकट दूर होता है। प्राचीन काल में भारत का लौह उद्योग, वस्त्र उद्योग, जहाजरानी उद्योग, रसायन उद्योग इसी आधार पर खड़े थे। भारत सोने की चिड़िया उसी दम पर कहलाता था। आर्थिक संकट दोषपूर्ण योजनाएं, अकुशल नेतॄत्व तथा भ्रष्टाचार से उपजता है। सुधी पाठक अब आप बताएं कि देश में आर्थिक संकट उपजाने में दोषपूर्ण योजनाएं, अकुशल नेतॄत्व तथा भ्रष्टाचार सहायक हैं अथवा बूढ़े माँ-बाप।
धिक्कार है ऐसी सोच को, जो बुढों को आर्थिक तराजू पर तोलते हैं।
जवाब देंहटाएंहिन्दी का प्रचार राष्ट्रीयता का प्रचार है।
हिंदी और अर्थव्यवस्था, राजभाषा हिन्दी पर, पधारें
आर्थिक संकट दोषपूर्ण योजनाएं, अकुशल नेतॄत्व तथा भ्रष्टाचार से उपजता है। साथ ही पूंजीवादी लालची सोच से भी समस्याएँ बढती है.
जवाब देंहटाएंबूढों का अनुभव ही युवाओं को संतुलित बनाए रखता है...
क्या कहियेगा डा. कवि जी, यहाँ कोई कुछ भी लिख जाता है.
आर्थिक संकट दोषपूर्ण योजनाएं, अकुशल नेतॄत्व तथा भ्रष्टाचार से उपजता है। साथ ही पूंजीवादी लालची सोच से भी समस्याएँ बढती है.
जवाब देंहटाएं............................................
sulabh ke in vicharo se poori tarah sahmat
achha vishay aur sateek baat samne rakhi hai aapne
6 sept. ki apki tippadiyan sahi aur zordar hain.
जवाब देंहटाएंsafgoi ke liye main apki prashansha karoonga.
kunwar kusumesh