22 सितंबर 2010

नोकझोक : ज्योतिषियों और वैज्ञानिकों की

-डॉ० डंडा लखनवी

आजकल अनेक टी०वी० चैनलों पर ज्योतिष-शास्त्र से जुडे़ कार्यक्रम प्रमुखता से प्रसारित हो रहे हैं। कुछ कार्यक्रमों में वैज्ञानिकों और ज्योतिषियों के बीच नोकझोक अर्थात शास्त्रार्थ भी दिखाया जाता है। इस नोकझोक में ज्योतिषियों के अपने तर्क होते हैं और वैज्ञानिकों के अपने। दोनों में से कोई भी हार मानने के लिए तैयार नहीं होता। अंतत: ज्योतिषी महोदय अपनी बात मनवाने के लिए अड़ जाते हैं। वैज्ञानिक जब उनकी बातों का खंडन करते हैं तो उन्हें क्रोध जाता है और वे अपनी योग विद्या के प्रभाव से विज्ञानवादी वक्ता को सबक सिखाने पर तुल जाते हैं। यह सबक येनकेन प्रकारेण उसे भयभीत करने का तरीका होता है। इस काम के लिए वह वैज्ञानिक पर मनोविज्ञान दबाव भी बनता है। वैज्ञानिक उसके दबाव में जब नहीं आता तो ज्योतिषी महोदय के तेवर धीरे-धीरे आक्रामक होते जाते हैं और विज्ञानवादी रक्षात्मक स्थिति में जाता है। कुल मिला कर यह एक ऐसा स्वांग होता है जो दिन भर चलता है। दर्शक गण हक्का-बक्का हो कर दोनों के तर्क-वितर्क में डूबते-उतराते रहते हैं। कोई निर्णय अंत तक नहीं हो पाता है। सारंश यह है कि निर्णय दर्शक को स्वयं करना होता है।

इस संबंध में मेरा मानना है कि ज्योति शब्द प्रकाश अर्थात आलोक का द्योतक है। प्रकाश के सम्मुख आने पर वे सभी चीजें दिखने लगती हैं जो अंधेरे के कारण हमें नहीं दिखाई पड़ती हैं। जिस प्रकार सजग शिक्षक अपने विद्यार्थियों के आचरण और व्यवहार में निहित गुण-दोषों को देखकर उसके जीवन के विकास के खाके का अनुमान लगा लेता है। वैसे ही ज्योतिषी भी जातक के जीवन में घटित होने वाली धटनाओं का अनुमान लगाता है, खाका खीचता है। इस कार्य में वह धर्म, दर्शन, गणित, अभिनय-कला, नीतिशात्र, तर्कशास्त्र, मनोविज्ञान, पदार्थ-विज्ञान, शरीर-विज्ञान, खगोल-विज्ञान, समाजशात्र तथा लोक रुचि के नाना विषयों का सहारा लेता है। वस्तुत: ज्योतिष शास्त्र एक सामाजिक विज्ञान है। यह पदार्थों पर आधारित विज्ञान नहीं है। इस विज्ञान की प्रयोगशाला समाज है। सामाजिक विज्ञानों के लिए अकाट्य सिद्धांतों का निरूपण करना कठिन होता है। सामाजिक परिवर्तन की गति बहुत धीमी होती है। इसके अंर्तगत होने वाले परिवर्तन के प्रभाव तत्काल दिखाई नहीं देते हैं। अत: पदार्थ विज्ञानों की भांति ज्योतिष के निष्कर्ष शतप्रतिशत खरे होने की कल्पना आप कैसे कर सकते हैं? ज्योतिष के निष्कर्षों की विविधता का एक अन्य कारण और भी है। कु़दरती तौर पर हर व्यक्ति का कायिक और भौतिक परिवेश दूसरे से भिन्न होता है। इस आधार पर उसका विकास स्वतंत्र और दूसरे व्यक्ति से भिन्न होता है। यहाँ तक जोड़वां संतानों में भी कोई कोई अन्तर अवश्य रहता है जिसके आधार पर वे पहचाने जाते है। इस आधार पर हर व्यक्ति का भविष्य भी दूसरे से भिन्न ठहरता है। अत: पदार्थ विज्ञान की भाँति इससे तत्काल और सटीक परिणामों की आशा करना व्यर्थ है। इसके परिणाम एक प्रकार के पूर्वानुमान होते हैं। हाँ, किसी धंधे को चमकाने के लिए मीडिया एक अच्छा माध्यम है ज्योतिषियोंऔर मीडिया की आपसी साठगांठ से दोनों का धंधा फलफूल रहा है। वर्तमान को सुधारने से भविष्य सुधरता है। इस तथ्य अगर आप आत्मसात लें तो आपका भविष्य अवश्य सुखद होगा।


6 टिप्‍पणियां:

  1. वर्तमान को सुधारने से भविष्य सुधरता है।-बिल्कुल सही कहा!

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  2. Mahodai,
    Aapney sateek kaha, mainey Dong,Pakhand Aur Jyotish me yahi sidh kiya tha.Aagey jyotish aur Hum mey zyada spashta hoga.

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  3. ऐसी सभी बहसें पूर्व नियोजित ही लगते हैं .सहमत है आप के विचारों से.

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  4. विचारोत्तेजक आलेख|साधुवाद|
    - अरुण मिश्र

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  5. ऐसा हो सकता है कि ज्योतिषाचार्यों और वैज्ञानिकों की TV पर बहस, मीडिया के साथ मिलकर, प्रचार-प्रसार के लिए साजिश का हिस्सा हो परन्तु तमाम मामलों में यदि वैज्ञानिक अपना पक्ष नहीं रक्खेंगे तो अंध विश्वास फैलाने वाले लाखो लाख लोग अपने मकसद में कामयाब होते रहेंगे.

    कुँवर कुसुमेश
    visit : kunwarkusumesh.blogspot.com

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