मीठे सुरों के साज़ के सुरताल की तरह।
तेरे हसीन ख्वाब के महिवाल की तरह।
दिल में मोहब्बतों का उजाला लिए हुए-
मैं आ रहा हुँ दोस्त! नए साल की तरह॥
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सद्भावी-डॉ० सुरेश उजाला

-डॉ० डंडा लखनवी

आजकल आस्था का ढ़ोल बड़ी जोरों से पीटा जा रहा है। आम जनता मीडिया के प्रवाह में बह जाती है। जब होश आता है तब बड़ी देर हो चुकी होती है। आस्था यह एक संवेदनशील मुद्दा है। इस पर गंभीरता-पूर्वक विचार किए जाने की आवश्यकता है। व्यक्ति की आस्था उसका नितांत निजी विषय है। किसी की आस्था से छेड़छाड़ करने का किसी को हक़ नहीं होता है। यह दिल का और घर की सीमा का विषय है। जब आस्था घर की चाहारदिवारी से बाहर आ जाती है तो वह समुदायिक विषय-वस्तु बन जाती है। उसके घरके बाहर आने से अनेक लोग प्रभावित होते हैं। ऐसी दशा में उसे सत्य की कसौटी पर कसे जाने की आवश्यकता होती है। अगर ऐसा नहीं किया जाता है तो कुछ व्यकित्यों की आस्था जाने-अनजाने पूरे समुदाय टोपा बन जाती है। वह टोपा सबके सिर पर फिट आए यह कैसे संभव है? देश आस्थाओं से नहीं कानून-व्यवस्था से अनुशासित होता है। आस्था और पाखंड दोनों अलग- अलग चीजें हैं। इन दोनों में आसानी से रिस्ता बनाया जाता रहा है। आस्था अगर शहद है तो पाखंड विष है। आप दोनों को एक साथ नहीं मिला सकते हैं।
परदों पर लिखते हुए मुझे अपने परदादे याद आने लगे। जब मैं सात साल का था- "बताया गया माँ स्वर्गवासी हो गई।" निकटस्थ संबंधियों से स्वर्गवासी होने का मतलब जानना चाहा। बताया गया- "वह परदेसी हो गई है।" मैंने अर्थ लगाया -"वो पर्दे में चली गई।" सात साल का बच्चा इससे अधिक अर्थ लगा भी क्या सकता था? अपने पिता जी को मैंने देखा, दादा को देखा किन्तु परदादा को नहीं देखा। मेरे पैदा होने के पहले वे परदेसी हो चुके थे। पर+दादा के पिता जी उसके पहले परदेसी हो चुके थे। कहते हैं कि ईश्वर सबका पिता है। 'स्वर्ग' उसका स्थायी पता है अथवा अस्थायी, यह तो वही बता सकता है। मुझे तो वह पर+देसी लगता है। ईश्वर और इंसान के बीच हमेशा पर्दा -सा रहा है। यह पर्दा -सा ही उसे पर+देसी बनाता है। पर्दे के प्रति ईश्वर का लगाव अधिक है। पर्दा उसके लिए बहुत उपयोगी है। वह इंसान के सामने बेपर्दा कभी नहीं हुआ। वह पर्दे में बना रहे तो ही अच्छा है। यदि वह पर्दे के बाहर आ गया तो उनके लिए मुसकिलें खड़ी हो सकती हैं जो खु़द को ईश्वर घोषित किए हुए हैं।-डॉ० डंडा लखनवी
"रंग लाएगी किसानी। यह धरा होगी सुहानी॥आने वाली कोपलों को- देके देखो खाद-पानी॥"