(1)
कर्ज़ अपना चुकाते चलो।
फ़र्ज अपना निभाते चलो।।
यूँ समय की शिलालेख पर-
नाम अपना लिखाते चलो।।
(2)
शत्रु को पछाड़ता रहा।
सिंह सा दहाड़ता रहा।
नूतन बदलाव के लिए-
क्रांति-बीज गाड़ता रहा।।
(3)
कुछ खड़े सवाल आज भी।
जान को बवाल आज भी ।।
कर रहे स्वदेश खोखला-
मुल्क के दलाल आज भी ।।
(4)
फ़न को भी बेचते हैं वे।
मन को भी बेचते हैं वे।।
पेट की हैं मजबूरियाँ-
तन को भी बेचते हैं वे।।
(5)
जिंदगी अनाम हो गई।
हिकमत नाकाम हो गई।।
जनसत्ता नए दौर में-
ठलुओं के नाम हो गई।।
कुछ खड़े सवाल आज भी।
जवाब देंहटाएंजान को बवाल आज भी ।।
कर रहे स्वदेश खोखला-
मुल्क के दलाल आज भी nice
बढ़िया मुक्तक हैं सर जी!
जवाब देंहटाएंइसकी चर्चा यहाँ भी तो है-
http://charchamanch.blogspot.com/2010/04/blog-post_03.html