स्वदेशी परिंदे के...............
-डॉ० डंडा लखनवी
परिंदों के खैराती पाए हैं, पर हैं।
सफ़र में हैं अंजाम से बेख़बर हैं ॥
कल "ईस्ट इंडिया कंपनी" ने चरा था,
अब उससे भी शातिर बहुत जानवर हैं॥
उधर उसने कल - कारखाने हैं खाए,
इधर कामगारों की टूटी कमर हैं॥
सियासत के गहरे समन्दर में देखो-
गरीबों को चारा बनाते मगर हैं॥
ठगी, चोरी, मक्कारी, वादाख़िलाफ़ी,
रहे रहबरों में यही अब हुनर हैं?
लगी करने सरकारें भी अब डकैती,
कि इंसाफ़ो - आईन सभी ताक़ पर हैं॥
शहीदों के आँसू उन्हें खोजते हैं,
नए युग के आशफ़ाको-बिस्मिल किधर हैं॥
ठगी, चोरी, मक्कारी, वादाख़िलाफ़ी,
जवाब देंहटाएंरहे रहबरों में यही अब हुनर हैं?
लगी करने सरकारें भी अब डकैती,
कि इंसाफ़ो - आईन सभी ताक़ पर हैं॥
शहीदों के आँसू उन्हें खोजते हैं,
नए युग के आशफ़ाको-बिस्मिल किधर हैं॥
...........Bahut Sahi. Bahut khoob!
स्वदेशी परिंदों की खूब खबर ली आपने ! लखनवी जी !नमस्कार मै उषा दुर्ग में मिले थे !
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