07 अप्रैल 2010

राजेन्द्र रंचक के पाँच मुक्तक

(1)
चमन  वीरान  हम   होने  न देंगे।
सुकूं दिल का कभी खोने न देंगे।।
लगा लेंगे  कलेजे  से लपक  कर-
किसी  मजबूर  को रोने  न देंगे।।
(2)
हसद  को  छोड़  दे  नादान है तू।
सगी  बहने  हैं  हिंदी  और  उर्दू।।
जो  कागज के  बने  होते हैं यारों-
कहाँ आती है उन फूलों से खुशबू।।
 

(3)
दीप  उल्फ़त  के  हर   स़मत  जलाना  होगा।
भाईचारे  को  मोहब्बत   से निभाना  होना।।
हिन्दू  मुसलिम हो  इसाई हो या कोई ‘रंचक’
एक मरकज  पे  इन्हें आप  को लाना होगां।।
(4)
वतन   पे  आँच  आये  ये  गवारा   हो  नहीं  सकता।
जो दुशमन देश  का है  वो  हमारा  हो नहीं सकता।।
जला करते हैं ‘रंचक’ जिनके दिल में दीप नफरत के-
ग़मों  से  ऐसे  लोगों  का कनारा  हो  नहीं सकता।।
(5)
हमें बलिदानियों  की  जब  कहानी  याद  आती  है।
भगत, अशफ़ाक, शेखर की जवानी  याद  आती है।।
वतन  पे  कर  गए  कुर्बान   जो  हैं  जिंदगी  अपनी-
उन्हीं  वीरों  की  ‘रंचक’ जिंदगानी  याद  आती है।।

सचलभाष-09454695431, 09369831446

2 टिप्‍पणियां:

  1. "दीप उल्फ़त के हर स़मत जलाना होगा।
    भाईचारे को मोहब्बत से निभाना होना।।
    हिन्दू मुसलिम हो इसाई हो या कोई ‘रंचक’
    एक मरकज पे इन्हें आप को लाना होगां।।"

    bahut badhiya sandesh deti aapki ye post...

    kunwar ji.

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  2. शानदार,सटीक मुक्तक, बधाई राजेन्द्र जी को.

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