"अशिक्षा समाज प्रदत्त अभिशाप है।"
अभिशापित व्यक्ति के कष्टों का अंत नहीं। उसके कारण वह पग-पग
पर कष्ट भोगता है। देरसबेर समाज को भी उसके दंश झेलने पड़ते हैं।
एक अभिशप्त नारी की व्यथा को इस लोकगीत में अनुभव कीजिए।
-डॉ० डंडा लखनवी
लोकगीत


सुहात नाहीं हमका अंगुठा लगाना॥
जब मैं जाती बैंक पइसा निकारै,
अंगूठा पकड़ बबुआ शेखी बघारै,
नज़र लागै वहिकी तनी आशिकाना॥
सिखाय देव बलमा दस्तखत बनाना॥
पोस्टमैन आवै मनिआडर जो लावै,
छापै अंगूठा की कसि कसि लगावै,
सिहात नाहीं वहिका अंगुठा दबाना।
सिखाय देव बलमा दस्तखत बनाना॥
आवै चुनाव मतदान करै जाई,
अंगुठा थमाय बाद अंगुरी थमाई,
चलत नाहीं हुआं सैयां कोऊ बहाना।
सिखाय देव बलमा दस्तखत बनाना॥
एक अछूते विषय पर आपने बढ़िया कलम चलाई है!
जवाब देंहटाएंतो अंगूठा खुद काहे न लगावै है, दूसरे को क्यों पकडने देवै...
जवाब देंहटाएं---अच्छा सामाज़िक सरोकार का गीत है
---पर ये कौन सी लोक भाषा व किस क्षेत्र की भाषा है?
बहुत दिन पहले आपको पढ़ा था ... बहुत पसंद आईं आपकी रचनाएं ... अचानक याद आई तो आज खोज कर पहुंचा हूँ ... बहुत सी पोस्टें पढ़ रहा हूँ दो घंटे से ... लेकिन इतनी बेशकीमती पोस्टों पर इतने कम कमेन्ट देख कर आश्चर्य हो रहा है ... नए लेखकों के लिए आदर्श ब्लॉग लगा मुझे तो ... प्रणाम
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