-रवीन्द्र कुमार राजेश
आ सको आना, भला यह भी बुलाना क्या हुआ।
फ़र्ज़ आखि़र, यह बुलाने का निभाना क्या हुआ।।
आए कुछ बोले न बैठे, क्या हुआ जो चल दिए,
इस तरह आना भला, आने में आना क्या हुआ।।
जिंदगी में आज किसको याद करता कौन है,
याद मतलब से अगर आए तो आना क्या हुआ।।
आज के इस दौर में अब बावफ़ा मिलते कहाँ,
दिल लगाना बेवफ़ा से, दिल लगाना क्या हुआ।।
दूसरों को ही गिरा कर, लोग जो उठते रहे,
जिंदगी में इस तरह, उठना-उठाना क्या हुआ।।
जो किसी गिरते हुए का थाम लेते हाथ हैं,
उन खु़दा के फरिस्तों को आजमाना क्या हआ।।
बीच अपनों के समझ ‘राजेश‘ दिल की कह गए,
राज़ अपनों से छिपाना भी छिपाना कया हुआ।।
पता-
"पद्मा कुटीर"
सी-27, सेक्टर-बी,
अलीगंज स्कीम,
लखनऊ-226024
फोन: 0522 2322154
बहुत ही शानदार गजल है!
जवाब देंहटाएंआपकी लेखनी को नमन!
दूसरों को ही गिरा कर, लोग जो उठते रहे,
जवाब देंहटाएंजिंदगी में इस तरह, उठना-उठाना क्या हुआ।
डंडा साहब इस कामयाब ग़ज़ल के लिए ढेरों दाद कबूल करें...हर शेर में कमाल किया है आपने...बधाई...वाह..
नीरज
--सुन्दर गज़ल--
जवाब देंहटाएं"याद मतलब से अगर आए तो आना क्या हुआ।।" ---आना क्या हुआ-- दोहराया गया है अतः यदि---
--" याद मतलब से जो आये याद आना क्या हुआ" हो तो अधिक सटीक होगा।