20 जून 2010

ऐसे ढूंढ़ा है तुझे भीड़ भरी दुनियाँ में...............

                        
                              -अरविन्द कुमार ’असर’


जो   तेरे   साथ   गुज़ारा   वो   ज़माना   ढू़ढ़े।।
दिल   मेरा   फिर  से  वही  वक़्त  पुराना ढू़ढ़े।।

ऐसे    ढूंढ़ा   है   तुझे  भीड़   भरी  दुनियाँ  में-
जैसे   नक्शे  के  बिना   कोई  ख़ज़ाना   ढू़ढ़े।।

है   मोहब्बत  भी  उसे  डर  भी है  रुसवाई का-
पास   आते   ही  वो  जाने   का  बहाना   ढू़ढ़े।।

शहर  में    भी   नहीं  भूला   वो   पुरानी  बातें-
अब   भी  झरनों  का  वो  संगीत सुहाना ढू़ढ़े।।

कुछ  तुझे करना है तो फ़िक्र न कर दुनिया की-
यूँ  तो   सच  बात  में  भी  कोई फ़साना  ढू़ढ़े।।

उलझने  दिल  की  वहाँ  पर  भी नहीं सुलझेंगी-
आदमी   चाँद    पे   भी   चाहे   ठिकाना   ढू़ढ़े।।

जाल   में उसका ’असर’ फ़सना  बहुत दूर  नहीं-
वो    परिन्दा   जो    बहुत   देर  से  दाना  ढू़ढ़े।।





   268/46/66  डी-
   खजुहा,  तकिया चाँद अली शाह
   लखनऊ- 226004
   सचलभाष-941592819
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