19 जून 2010
गज़ल़ : या फिर ये अखबार सही........................
-अरविन्द कुमार ’असर’
जैसे दो दो चार सही।
वैसे अपना प्यार सही।।
झगड़ा गर रुक जाए तो,
आँगन में दीवार सही।।
मैं ठहरा हर बार गलत,
तुम ठहरे हर बार सही।।
या तो सही है मेरा कहना,
या फिर ये अखबार सही।।
मेरे हाथ में कलम है प्यारे,
पास तेरे तलवार सही।।
छाप तिलक सब ठीक है प्यारे,
पहले हो किरदार सही।।
जो रिस्तों में गर्मी रक्खे,
बस उतनी तकरार सही।।
जीत गलत है इश्क़ में प्यारे,
इश्क़ में होती हार सही।।
मेरी समझ में आज 'असर' हैं,
सौ में बस दो चार सही।।
268/46/66 डी- खजुहा, तकिया चाँद अली शाह
लखनऊ- 226004
सचलभाष-9415928198
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दिल खुश हो गया
जवाब देंहटाएंरदीफ को बढ़िया तरीके से निभाया है जो कि मुश्किल काम है
शुक्रिया
पढकर शुकून मिला।अच्छी प्रस्तुति।
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