-अरविन्द कुमार ’असर’
जैसे इक पहेली का हल नहीं दिया जाए।
जिंदगी के बारे में और क्या कहा जाए॥
किस क़दर ख़ुशी भी हो किस क़दर अचम्भा भी,
फ़ोन के ज़माने में ख़त किसी का जाए॥
दुश्मनों के हमलों की काट तो निकल आती,
दोस्तों की साजिस से किस तरह बचा जाए ?
काग़ज़ी पतंगें भी राज़ ये बताती हैं,
रुख़ जिधर हवा का हो उस तरफ उड़ा जाए॥
काम तो बड़ा सबसे सिर्फ़ तब ही होता है,
कर्म मन वचन से जब काम कुछ किया जाए॥
झूठ के बिना पर ही लड़ रहे हैं जब दोनों
फिर भला लड़ाई में किस तरफ हुआ जाए॥
साहिलों पे, पानी पे, आस्माँ पे, बादल पे,
जो लिखा है कुदरत ने उसको भी पढ़ा जाए॥
कम न जानो जुगनूं को ऐ ’असर’ अंधेरे में,
क्या अजब कि जुगनूं ही रास्ता दिखा जाए॥
268/46/66 डी-
खजुहा, तकिया चाँद अली शाह
लखनऊ- 226004
सचलभाष-9415928198
वाह........वाह....... सुन्दर रचना के लिए बधाई |
जवाब देंहटाएंsundar...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर......
जवाब देंहटाएंदुश्मनों के हमलों की काट तो निकल आती,
जवाब देंहटाएंदोस्तों की साजिस से किस तरह बचा जाए ?
-वाह वाह!! क्या बात कही है..उम्दा!
किस क़दर ख़ुशी भी हो किस क़दर अचम्भा भी,
जवाब देंहटाएंफ़ोन के ज़माने में ख़त किसी का जाए॥
बहुत सुन्दर रचना, बेहतरीन पंक्तियाँ !