07 जून 2010

मोबाइल पे अब भीख मांगें भीखारी.............

                                -डॉ० डंडा लखनवी 


मोहब्बत  में   बेकार  अब  डाकखाना।
नहीं  प्रेम  पत्रों  का अब  वो जमाना ॥
जिसे   देखिए  वो  मोबाइल   लिए  है।
मोबाइल  के   जरिए   मरे  है, जिए  है॥
मोबाइल  हुआ  अब तो गाजर  व मूली।
करें   माफिया    इससे   हफ़्ता  वसूली ॥
मोबाइल  पे   कुछ   हैं  चुकाते   उधारी।
मोबाइल पे  अब  भीख  मांगें  भीखारी॥




 


मोबाइल  पे   रोना  मोबाइल  पे  हंसना।
मोबाइल से  छुटना मोबाइल से फंसना
मोबाइल  मोहब्बत   का   आधार है जी
मोबाइल बिना  अब  कहाँ   प्यार है जी॥
मोबाइल  के   जरिए  मोहब्बत  इजी है।
मोबाइल  में   हर  एक   बंदा  बिजी  है॥   
मोबाइल   भीतर    लवर  के   हैं   फोटो
लव हो, लवर हो  मोबाइल  पे  लोटो॥


3 टिप्‍पणियां:

  1. क्या सामयिक व्यंग्य है वाकई में सही आकलन किया है बदलते समय का आपने ! शुभकामनायें भाई जी

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  2. एसी व्यर्थ की कविताओं से क्या सामाजिक सरोकार हो रहा है

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