-डॉ० डंडा लखनवी
पंगई दंगई, लुच्चई, नंगई।
हर जगह बढ़ गई आजकल वाक़ई॥अब है मौसम का कोई भरोसा नहीं-
मार्च में जनवरी, जनवरी में मई॥
भा गया हैरीपाटर नई पौध को-
धूल खाती किनारे कहीं सतसई॥
जिसको देखो वो सपने में ही बक रहा-
मुंबई, मुंबई, मुंबई, मुंबई॥
राजा दसरथ अगर आज कोई बना-
नोच डालेगी अब की उसे केकई॥
गलियों-गलियों में करके सुना एमबीए.-
लड़की-लड़के कहें ले दही, ले दही॥
प्यार आहें भरे पहरेदारी में जो-
तो मोबाइल के जरिए मिले चंगई॥
चाहने वाले उसके बुढ़ा जाएंगे-
नई दिल्ली रहेगी नई की नई ॥