31 जनवरी 2010
उम्र की औकात
-डा0 सुरेश उजाला
सब कुछ है-याद
कुछ नहीं भूला हूँ-मैं
बहुत कुछ हो गया है-
तीन-तेरह
उलट-पलट
फिर भी-
सफेद कुहासे से धिरे-
पहाड़ी-जंगलों के बीच-
उलझने लगता हँू मैं
आज भी,
मेरे भीतर से
फूट पड़ता है-कोई
सूखा झरना,
खंडहरों में क़ैद-
पनीले स्वप्न
बेचैन हवाएं
ले जाती हैं-मुझे
जाने-कहाँ से कहाँ
बाहर का रेतीलापन
बहा ले जाता है-
मेरे अंदर का-
खैलता पानी,
क्योंकि मैंने
पलकों से किया है
नमक उठाने का-प्रयास
और
पानी की छाती पर
गोदा है-नया विश्वास,
इसलिए
मुझे मालूम है-
झूठे सच का दर्द
हवस की कोख
बेवश बस्तियाँ
भूखी-आँखें
सदियों की प्यास
बेलगाम आँधियाँ
और
उम्र की औकात
बगैर जिंदगी
होती है-क्या
जिसका परिणाम है-
बेरूत की आग
झुलसता लेबनान
फिलीपीन का धुआं
राख हुआ वियतनाम
और-
दक्षिण एशिया में
सुलगती चिंगारी,
इसलिए-
आओ-
करो जागरण
सच का-
सच्चाई का,
ताकि दे सको पैगाम
मानव-कल्याण का दुनिया में।
108-तकरोही, पं0 दीन दयाल पुरम मार्ग, इन्दिरा नगर,
लखनऊ-226016 सचलभाष-09451144480
26 जनवरी 2010
गणतंत्र दिवस जब आता है,
-डा0 गिरीश कुमार वर्मा
गणतंत्र दिवस जब आता है, हम सबका मन हरसाता है।
यह दिन जनता के शासन की, सबको तारीख बताता है।।
कल शिक्षा के उपहार न थे,
समरसता के आधार न थे,
गिनती सबकी थी दासों में-
मिलते मौलिक अधिकार न थे,
नव भारत का नव संविधान मौलिक अधिकार दिलाता है।
यह दिन जनता के शासन की सबको तारीख बताता है।।
जो कल था वो है आज नहीं,
गिरती सामंती गाज नहीं,
अंग्रेज यहाँ से गए चले-
है यहाँ ‘क्वीन’ का राज नहीं,
जनता का प्रतिनिधि जनता से चुनकर संसद में जाता है।
यह दिन जनता के शासन की सबको तारीख बताता है।।
यह तोहफा बड़ा सुहाना है,
इसका सम्मान बढ़ाना है,
यह पर्व नहीं है महापर्व-
मिलजुल कर इसे मनाना है,
खुद जियो और को जीने यह दिन युगबोध कराता है।
यह दिन जनता के शासन की सबको तारीख बताता है।।
आओ हम सब नाचे गाएं,
निज प्रेम परस्पर बरसाएं,
अम्बर में चक्र युक्त अपना-
ध्वज अमर तिरंगा लहराएं,
जिसके सम्मुख अति श्रद्धा से मस्तक सबका झुक जाता है।
यह दिन जनता के शासन की सबको तारीख बताता है।।
गणतंत्र दिवस जब आता है, हम सबका मन हरसाता है।
यह दिन जनता के शासन की, सबको तारीख बताता है।।
कल शिक्षा के उपहार न थे,
समरसता के आधार न थे,
गिनती सबकी थी दासों में-
मिलते मौलिक अधिकार न थे,
नव भारत का नव संविधान मौलिक अधिकार दिलाता है।
यह दिन जनता के शासन की सबको तारीख बताता है।।
जो कल था वो है आज नहीं,
गिरती सामंती गाज नहीं,
अंग्रेज यहाँ से गए चले-
है यहाँ ‘क्वीन’ का राज नहीं,
जनता का प्रतिनिधि जनता से चुनकर संसद में जाता है।
यह दिन जनता के शासन की सबको तारीख बताता है।।
यह तोहफा बड़ा सुहाना है,
इसका सम्मान बढ़ाना है,
यह पर्व नहीं है महापर्व-
मिलजुल कर इसे मनाना है,
खुद जियो और को जीने यह दिन युगबोध कराता है।
यह दिन जनता के शासन की सबको तारीख बताता है।।
आओ हम सब नाचे गाएं,
निज प्रेम परस्पर बरसाएं,
अम्बर में चक्र युक्त अपना-
ध्वज अमर तिरंगा लहराएं,
जिसके सम्मुख अति श्रद्धा से मस्तक सबका झुक जाता है।
यह दिन जनता के शासन की सबको तारीख बताता है।।
19 जनवरी 2010
उल्लू जी स्कूल गए
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