07 मार्च 2012

डॉ० राम निवास ‘मानव’ की क्षणिकाएं


(1)
सीमा पार से निरंतर
घुसपैठ जारी है|
‘वसुधैव कुटुम्बकम’
नीति यही तो हमारी है|
(2)
दलदल में धंसा है|
आरक्षण और तुष्टीकरण के,
दो पाटों के बीच में
भारत फंसा है|
(3)
लूट-खसोट प्रतियोगिता
कबसे यहाँ जारी है |
कल तक उन्होंने लूटा था,
अब इनकी बारी है|
(4)
देश के संसाधनों को
राजनीति के सांड चर रहे हैं|
और उनका खामियाजा
आमजन भर रहे हैं|
(5)
मेरा भारत देश
सचमुच महान है|
यहाँ भ्रष्टाचारियों के हाथ में
सत्ता की कमान है|
(6)
जो नेता बाहर से
लगते अनाड़ी हैं|
लूट-खसोट के वे
माहिर खिलाडी हैं|
(7)
वे कमीशन का कत्था
रिश्वत का चूना लगाते हैं|
इस प्रकार देश को ही
पान समझ कर खाते हैं|
(8)
देश को, जनता को,
सबको छल रहे हैं|
नेता नहीं, वे सांप है,
आस्तीनों में पल रहे हैं|
(9)
नेता जी झूठ में
ऐसे रच गए|
सच को झूठ कहकर,
साफ़ बच गए|
(10)
नेता बाहर रहे
या जेल में,
वह पारंगत है,
सत्ता के हर खेल में|
(11)
उन्होंने गांधी टोपी पहन
अन्नागीरी क्या दिखाई|
कल तक ‘दादा’ थे,
आज बने हैं ‘भाई’|
(12)
जो कई दिनों से था
अस्पताल में पड़ा हुआ|
खर्च का बिल देखते ही
भाग खड़ा हुआ|
(13)
क्या छोटे हैं,
और क्या बड़े हैं|
सभी यहाँ बिकने को
तैयार खड़े हैं|
(14)
झूठ जाने क्या-क्या
सरेआम कहता रहा|
और सिर झुका कर सच
चुपचाप सहता रहा|

अनुकृति’, 706, सेक्टर-13
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