26 सितंबर 2011

बिल्ली का खंभा नोचना

                          
                -डॉ० डंडा लखनवी

हिंदी में एक मुहावरा है....... "बिल्ली का खंभा नोचना"। इस मुहावरे का अर्थ है कदाचार में पकड़े जाने पर कुपित होना, रोष प्रकट करना। यहाँ एक उदाहरण रख रहा हूँ। टिकट-विंडो पर लम्बी लाइन लगी होती है। एक व्यक्ति आता है और लाइन में लगे हुए लोगों को धकिया कर हाथ टिकट-विंडो में डाल देता है। यदि लोग आपत्ति करते हैं तो बहाने बनाता है। किसी तरह से जब टिकट लेकर दूर खड़े अपने साथियों के पास पहुंचता है तो चकमा दे कर जल्दी टिकट पाने पर इतराता है। कदाचार का यह एक उदाहरण मात्र है। कदाचारी के पास बहुत से बहाने होते हैं। उसकी हरकतें पर जब पकड़ी जाती हैं तो उसकी दशा 'बिल्ली का खंभा नोचने वाली' हो जाती है। ऐसी हरकतें  करने वाले विदेशी नहीं देशी लोग हैं, नेता ही नहीं, जनता भी है।

19 सितंबर 2011

सपने अति रंगीन.........


                                     -डॉ० डंडा लखनवी

राजनीति  के  घाट  पर, अभिनय  का   बाज़ार।
मिला डस्टबिन में पड़ा, जनसेवा  उपकार॥1                         

जब  से    नेता    दे  रहे, अभिनेता     को  मंच।
आमजनों को मिल रहे, तब से फिल्मी -  पंच॥2

फैशन - हिंसा - काम -छल, दें  टीवी - चलचित्र।
इन  सब  में  बाजार  है, इसमें    कहाँ   चरित्र?3

टीवी   ने  सबको    दिए, सपने     अति   रंगीन।
बदले   में  उसने  लिया, सामाजिकता   छीन॥4

न्यूज़  चैनलों  पर   ख़बर, लो   दे    रहीं   बटेर।
शाकाहारी    बनेंगे   अब, जंगल     के     शेर॥5

क्या  परोसतीं  देखिए,  लोक  लुभावन  फिल्म।
अदब  हो गया बेअदब, घिसा - पिटा सा इल्म॥6

’डंडा’  अब  चलचित्र  की, महिमा  बड़ी  विचित्र।
दावा युग - निर्माण   का, बिगड़ा  और  चरित्र॥7

जब  तक  फिल्में  रहेंगी,  युग - यर्थाथ   से दूर।
फैलेगा  तब   तक  नहीं, नैतिकता   का    नूर॥8

केवल  धन - धंधा   नहीं, फिल्मों  का  निर्माण।
उज्ज्वल  लोकाचार   हैं, इसके  असली   प्राण॥9