-डॉ० डंडा लखनवी
क्रोध -बोध के बीच में, चलता सतत विरोध।
बोध-नाश पर क्रोध हो, क्रोध-विजय पर बोध॥
तीन बुद्ध की ’शरण’ हैं, पाँच बुद्ध के ’शील’।
तीन- पाँच से दुख सभी, सुख में हों तब्दील॥
'डंडा' बोध - बिहार के, चिंतन का यह सार।
वधस्थलों पर हो सकी,’अवध’ भूमि तैयार॥
पंच - शील से जब घटी, पंच - मकारी मार।
’डंडा’ तब संसार में, चमका अवध - बिहार॥
स्वर्ण अक्षरों में मिला, दर्ज़ा जिसे विशेष।
जहाँ न वध का नाम था, वो था अवध प्रदेश॥
दसो इंद्रियों का जहाँ, बहा सुमति का नीर।
गोमति का चिर अर्थ है, इंद्रिय - निग्रह धीर॥
’डंडा’ फैजाबाद है, अवध - शब्द अनुवाद।
अवध हमारी संस्कृति, वध करता बरबाद॥
शरण= त्रिशण, शील= पंचशील, वधस्थल= बलि देनेके स्थान, पंच-मकार= मन - विचलन के पाँच आकर्षण, सुमति= अच्छा चिंतन, गोमति=चिंतन का सार, इंद्रिय-निग्रह=इंद्रियों पर नियंत्रण, धीर= धीरज, फ़ैजाबाद= आपदा मुक्त स्थान, अवध,