गजल
मैं लिहाज़ में न बुला सका
                                -रवीन्द्र कुमार ‘राजेश’
वह मिला, नज़र से नज़र मिली, उसे आज तक न भुला सका।
वह तभी से दिल में समा गया, उसे आज तक न बता सका।। 
ग़मे दौर,  दौर-ए-ज़िंदगी  में  सिवाय ग़म के मिला ही क्या-
मेरे  सामने  से गुज़र  गया, मैं  लिहाज  में  न बुला  सका।।
                                          
ये  गलत  बयान  है  आपका, कि मैं संगे दिल हँू  या बेवफा-                                
मुझे प्यार  किसने  दिया कभी  कि जिसे नहीं मैं निभा सका।।                                         
नहीं  कोई  शिकवा किसी से  है, जो  हुआ यह मेरा नसीब है-
मैं खुली किताब हँू सामन,े कोई  राजे़  दिल न  छुपा  सका।।
जिसे समझे  अपना  थे  आशियाँ  मेरे सामने ही उजड़  गया-
मेरी  बेवसी  को  तो देखिए, मैं  खड़ा  रहा न  बचा  सका।। 
पद्मा कुटीर,
सी-27, बसंत बिहार,
अलीगंज हाउसिंग स्कीम, 
लखनऊ-226024
दूरभाष :  0522&232154

वाह जी, बहुत खूब!
जवाब देंहटाएं