12 दिसंबर 2010

चित्र cartoonindore.blogspot.com से साभार



















तीन मुक्तक




(1) मंहगाई


मंहगाई    हरजाई    है
करती जेब - सफाई है॥
कोई   नेता   क्यों   बोले-
उनके   लिए   मलाई है॥


(2) लोकतंत्र


तुमने जिसको वोट दिया।
उसने कर विस्फोट दिया॥
मौका   पाया  लोकतंत्र का-
गला   जोर  से घोट दिया॥


(3) डेंगू


वे   वतन  को  चर रहे  हैं।
पेट अपना   भर   रहे   हैं॥
खैर   मांगे    उनसे    डेंगू -
मरने   वाले   मर   रहे हैं॥

9 टिप्‍पणियां:

  1. तीनो मुक्तक एक से बढ़कर एक हैं , कम शब्दों में अपने सन्देश को संप्रेषित करने में आप सफल हुए हैं ... शुभकामनायें

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  2. बहुत खूब डंडा साहब...आनंद आ गया...

    नीरज

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  3. "खैर मांगे उनसे डेंगू ..."
    अत्यंत चुटीला व्यंग्य| तीनो मुक्तक शानदार हैं|
    - अरुण मिश्र.

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  4. आज की ज्वलंत समस्याओं को एक साथ व्यंग्य के धागे में पिरो कर सब के समक्ष बखूबी आपने रख दिया है.

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  5. खूब अच्छे डंडों से पाठ पढ़ाया. सुंदर क्षणिकाएं.

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