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तीन मुक्तक
(1) मंहगाई
मंहगाई हरजाई है।
करती जेब - सफाई है॥
कोई नेता क्यों बोले-
उनके लिए मलाई है॥
(2) लोकतंत्र
तुमने जिसको वोट दिया।
उसने कर विस्फोट दिया॥
मौका पाया लोकतंत्र का-
गला जोर से घोट दिया॥
(3) डेंगू
वे वतन को चर रहे हैं।
पेट अपना भर रहे हैं॥
खैर मांगे उनसे डेंगू -
मरने वाले मर रहे हैं॥
तीनो मुक्तक एक से बढ़कर एक हैं , कम शब्दों में अपने सन्देश को संप्रेषित करने में आप सफल हुए हैं ... शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंवाह वाह तीनो शानदार
जवाब देंहटाएंबहुत खूब डंडा साहब...आनंद आ गया...
जवाब देंहटाएंनीरज
bahut khoob!!!
जवाब देंहटाएं"खैर मांगे उनसे डेंगू ..."
जवाब देंहटाएंअत्यंत चुटीला व्यंग्य| तीनो मुक्तक शानदार हैं|
- अरुण मिश्र.
आज की ज्वलंत समस्याओं को एक साथ व्यंग्य के धागे में पिरो कर सब के समक्ष बखूबी आपने रख दिया है.
जवाब देंहटाएंवाह जी बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंखूब अच्छे डंडों से पाठ पढ़ाया. सुंदर क्षणिकाएं.
जवाब देंहटाएंsabhi rachnayen bahut sunder hain..
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