✍️ डॉ. डंडा लखनवी
➖➖➖➖➖➖
जब घर में कोई चीज़ गिर जाए, तो अम्मा कहती हैं – "अरे बर्तन गिरा है, कुछ बुरा होने वाला है!" और अगर बर्तन न गिरे तो "कुछ बुरा न होने की शांति" से डर लगने लगता है।
हमारे समाज में अंधविश्वास एक ऐसी चटनी है, जो हर व्यंजन के साथ परोस दी जाती है– शादी से लेकर शवयात्रा तक। इसमें स्वाद भले न हो, पर परंपराओं का तीखा झोल ज़रूर होता है।
गली के मोड़ पर बैठा पंडित ‘चूहा काट गया’, कौआ सिर पर बैठ गया, छिपकली पीठ पर कूदने से लेकर ‘नींबू मिर्च की माला’ तक हर बात का समाधान बताता है– और वो भी डिस्काउंट में। "गुरुवार को न काटो नाखून", "शनिवार को सिर न धोओ", "कुत्ता काटने पर कुकरैल नाला में डुबकी लगाओ", "काली बिल्ली रास्ता काटे तो उल्टा घूम जाओ", "अगर बिल्ली बार-बार रास्ता काटे, तो बिल्ली को समझाओ कि– "मैडम, अपना टाइम टेबल थोड़ा अलग बना लें।"
हमारे पड़ोसी शर्मा जी ने बताया कि उन्होंने अपने बेटे की नौकरी लगवाने के लिए ‘साढ़े तीन पंडितों’ से मुहूर्त निकलवाया था। जब मैंने पूछा आधा पंडित कौन था? तो बोले– "वो तो मोबाइल ऐप है!"
सच्ची बात है– आजकल अंधविश्वास भी डिजिटल हो गया है। यह ‘ऑनलाइन वास्तु दोष’, ‘ई-नज़र टोना’, और ‘रिल्स में टोटके’ का ज़माना है।
बड़ी बुआ ने घर के कोने-कोने में "लाल रिबन से बंधी मिर्च-नींबू की माला" टांग दी है, ताकि कोई नज़र न लगे। जबकि माला की हालत देख कर हमीं को नज़र लग गई- घर में मिर्च तो अब सब्ज़ी में भी नहीं बची।
और तो और, कुछ लोग तो अंधविश्वास को ऐसा व्यापार बना चुके हैं, जैसे टिन में बंद चटनी- "सर्टिफाइड डर"। अंधविश्वासी चटनी के व्यापारी " भूत भगाओ ताबीज़", और "ऑर्गेनिक ग्रह शांति सामग्री” भारी छूट पर बेचते हैं। टीवी पर बाबा लोग ऐसे ऐंकर बन गए हैं कि अबध ‘ब्रेकिन न्यूज़’ से ज़्यादा ‘टोटकों’ की टीआरपी है।
एक मित्र ने बताया कि उनके घर में पंखा उल्टा घूम रहा था, तो पंडित बुला लिया गया। पंडित बोले– “ब्रह्मांड में उल्टा असर हो रहा है!” मैंने चुपचाप पंखे का स्विच बदला, और ब्रह्मांड सीधा घूमने लगा।
क्या करें! हम उस देश के नागरिक हैं जहाँ विज्ञान की किताबें भी आंखें फाड़फाड़ कर देखती हैं कि बाहर निकलने का सही 'मुहूर्त’ आया है या नहीं।
अंधविश्वास की चटनी के मसालों में जायका है– डर का, धोखे का, और ढोंग का। परन्तु इस चटनी को खाते-खाते हम असली ज्ञान की रोटी के स्वाद को भूलते जा रहे हैं। अब समय आ गया है कि इस चटनी को सिर्फ चुटकुलों की प्लेट में सजाया जाए, ज़िंदगी के मेन-कोर्स में नहीं।
"सोचिए, समझिए, पर विश्वास की थाली में अंध न
मक न मिलाइए!"
🈴🈴🈴
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपकी मूल्यवान टिप्पणीयों का सदैव स्वागत है......