—हास्य-प्रधान लेख
➖➖➖➖➖
-डॉ. डंडा लखनवी
➖➖➖➖➖
गंगा-जमुनी तहज़ीब का नाम सुनते ही हमारी कल्पना में बनारस की गलियों, लखनऊ की नवाबी, और इमामबाड़े के सामने बैठी गुपचुप चाट वाली ठेली का चित्र खिंच जाता है। यह तहज़ीब वह रंगीन पटाखा है जिसमें एक ही वक्त में इबादत की आवाज़ भी गूंजती है और इधर गली के नुक्कड़ पर भांग की तरंग में डूबे पंडित जी 'रघुपति राघव' गुनगुनाते मिलते हैं।
इस तहज़ीब के बाजूबंद की बात करें तो यह कोई जेवर नहीं, बल्कि परस्पर मोहब्बत, अपनापन और अदबी ठसक से सना वो भावनात्मक धागा है, जिसे हर कोई बड़े गर्व से अपनी आस्तीन पर चिपकाए फिरता है — और कभी-कभी गर्मियों में पसीने से वो चिपक भी जाता है!
अब देखिए, हमारे मोहल्ले के सलीम चचा और मिश्रा जी, इस तहज़ीब के दो अलग-अलग किनारे हैं, लेकिन जब मोहल्ले में कोई मटन-कलेजी की दावत होती है, तो सलीम चचा मिश्रा जी से पूछते हैं —
“पंडित जी, खा लेंगे न थोड़ा... दवा समझ के।”
मिश्रा जी मुँह बनाते हुए जवाब देते हैं —
“अगर नींबू-नमक साथ हो तो धर्म भ्रष्ट नहीं होता!”
बस, यह है तहज़ीब — धर्म, पाचन और स्वाद का मिलाजुला बाजूबंद!
अब लखनऊ के नवाबों को लीजिए — एक बार नवाब साहब ने पंडित त्रिपाठी को चाय पर बुलाया। चाय में इत्र मिला था, और साथ में बर्फी भी — गुलाब जल से भिगोई हुई। पंडित जी चाय पीते ही बोले —
“नवाब साहब! ये चाय है या हवन-कुंड का तर्पण जल?”
नवाब मुस्कुरा कर बोले —
“जनाब, इसमें मुहब्बत है। थोड़ा अदब से पियो।”
पंडित जी बोले —
“अदब के साथ पीता हूँ, पर पहले नमक लेकर जीभ ज़िंदा करनी पड़ेगी!”
गंगा-जमुनी तहज़ीब का असली कमाल शादी-ब्याह में दिखता है। निकाह हो या फेरे — दोनों जगह बारात में DJ ज़रूर होता है, और DJ वाले अंकल को हमेशा “फुल वॉल्यूम में ‘मेरे रश्के कमर’ लगाओ” जैसी सर्वधर्म स्वीकार्य फरमाइश मिलती है। भले ही लड़का संस्कारी हो और लड़की शायरा — बारात में नाच कर तहज़ीब की तालीम पूरी होती है।
एक बार हमारे मुहल्ले में ईद और होली एक साथ आ गए। अब सलीम चचा ने मिश्रा जी से कहा —
“इस बार सेवइयों में भांग मिलाई है, तहज़ीब के नाम पर।”
मिश्रा जी बोले —
“तो मैं भी रंग में अबीर की जगह इत्र डाल दूं, गंगा-जमुनी खुशबू फैलेगी!”
यह तहज़ीब रेशमी नहीं, बल्कि हल्के खिचखिच वाले तौलिये की तरह होती है — कभी गले लग जाती है, कभी उलझ जाती है, लेकिन काम हर हाल में आती है।
तो भई, इस ‘गंगा-जमुनी तहज़ीब के बाजूबंद’ को कस के बांधे रखिए। इसमें भले ही कभी हास्य की गांठें लगें, पर मोहब्बत की सिलाई मजबूत रहती है।
क्योंकि अंत में, चाहे गंगा से स्नान करें या जमुना में डुबकी — ताज़गी तो 'संयुक्त संस्कृति' से ही आती
है! 😄
🈴🈴🈴🈴🈴
10/06/25
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपकी मूल्यवान टिप्पणीयों का सदैव स्वागत है......