मौज-मस्ती में जुटे थे जो वतन को लूट के।
रख दिया कुछ नौजवानों ने उन्हें कल कूट के।।
सिर छिपाने की जगह सच्चाई को मिलती नहीं,
सैकडों शार्गिद पीछे चल रहे हैं झूट के।।
तोंद का आकार उनका और भी बढता गया,
एक दल से दूसरे में जब गए वे टूट के।।
मंत्रिमंडल से उन्हें किक जब पड़ी ऐसा लगा-
गगन से भू पर गिरे ज्यों बिना पैरासूट के।।
शाम से चैनल उसे हीरो बनाने पे तुले,
कल सुबह आया जमानत पे जो वापस छूट के।।
फूट के कारण गुलामी देश ये ढ़ोता रहा-
तुम भी लेलो कुछ मजा अब कालेजों से फूट के।।
अपनी बीवी से झगड़ते अब नहीं वो भूल के-
फाइटिंग में गिर गए कुछ दाँत जबसे टूट के।।
फोन पे निपटाई शादी फोन पे ही हनीमून,
इस क़दर रहते बिज़ी नेटवर्क दोनों रूट के॥
यूँ हुआ बरबाद पानी एक दिन वो आएगा-
सैकड़ों रुपए चुकाने पड़ेंगे दो घूट के।।
ji bahut badhiya....
जवाब देंहटाएंkunwar ji,
आज तो बहुत कस के डंडा चलाया है!
जवाब देंहटाएंमेरी रचना पर टिपण्णी देने के लिए आभार । मेरी अन्य रचनायों पर भी आपका मत चाहता हूँ ।
जवाब देंहटाएंआपकी यह रचना मुझे बहुत पसंद आई । पढ़कर बहुत हंसा, बढ़िया मजेदार ग़ज़ल है ।
vyang bhari rachna... teekha vyang... samkaaleen soch...
जवाब देंहटाएंयूँ हुआ बरबाद पानी एक दिन वो आएगा-
जवाब देंहटाएंसैकड़ों रुपए चुकाने पड़ेंगे दो घूट के ..
हास्य के साथ साथ ग़ज़ब का संदेश ... गहरी बात ...
बढ़िया ..
जवाब देंहटाएंव्यंग बहुत ही जानदार है।
जवाब देंहटाएंमजाहिया और तंज़ को आपने जिस अंदाज़ से अपनी ग़ज़ल में गूंथा है उसकी जितनी तारीफ़ करूँ कम है...कमाल किया है डंडा साहब आपने कमाल...बेहतरीन लाजवाब बेमिसाल ग़ज़ल...मेरी ढेरम ढेर बधाई कबूल करें...
जवाब देंहटाएंनीरज
bahut khoob kahii....
जवाब देंहटाएंहास्य के साथ साथ ग़ज़ब का संदेश ... गहरी बात ...
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